Friday 9 March 2018

सीसीटीवी फूटेज ने खोला कासगंज दंगे का राज!

समय की खबर
नई दिल्ली। कासगंज दंगे से जुड़ा एक नया सीसीटीवी फूटेज सामने आया है। इसको देखने के बाद पूरे मामले पर पड़ी धुंध और साफ हो जाती है। वायरल हो चुका ये सीसीटीवी वीडियो उस समय का है जब वीर अब्दुल हमीद चौराहे पर मुस्लिम समुदाय के लोग झंडारोहण की तैयारी कर रहे थे।

वीडियो में उस दिन की तारीख यानी 26 जनवरी और साथ ही समय भी पढ़ा जा सकता है। इस वीडियो फूटेज में बिल्कुल साफ तौर पर देखा जा सकता है कि छोटे-छोटे मासूम बच्चे स्कूल ड्रेस में एकत्रित हैं। कुछ लोग नारंगी, हरे और सफेद रंग के गुब्बारों को जगह-जगह टांग रहे हैं।
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बहुत सारे बच्चों के आने का सिलसिला जारी है। चारों चरफ रौनक और जश्न का माहौल है। एक तरफ लोगों के बैठने के लिए कुछ कुर्सियां लगायी गयी हैं। लेकिन अचानक तभी गली की एक तरफ से हमला होता है और फिर लोग पीछे भागते हैं। जिससे वहां पड़ीं सारी कुर्सियां बिखर जाती हैं और लोग खुद को बचाने के लिए गलियों और आस-पास के मकानों में छुप जाते हैं। उन्हीं में से कुछ लोग कुर्सियां उठाकर एक दूसरे के ऊपर फेंकना शुरू कर देते हैं।

एक मिनट ठहरकर जरा सोचिए। इस वाकये का वहां मौजूद मासूम बच्चों की जेहनियत पर क्या असर पड़ा होगा। नफरत और घृणा फैलाने में जुटे पत्रकार और मीडिया के जो लोग पूरे मुस्लिम समुदाय को देशद्रोही और पाकिस्तानी साबित करने में दिन-रात एक किए हुए हैं। क्या उनके पास इसका कोई जवाब है? रोहित सरदाना सरीखे लोग जो ये पूछते नहीं थक रहे हैं कि क्या हम अपने देश में तिरंगा यात्रा भी नहीं निकाल सकते? या कहीं झंडा भी नहीं फहरा सकते? क्या उसके लिए किसी से इजाजत लेनी होगी? उन्हें जरूर इस बात का जवाब देना चाहिए कि यहां कौन तिरंगा फहराना चाहता था और कौन था जो उसे रोकने की कोशिश कर रहा था?

उन मासूम बच्चों के दिमाग पर पड़ने वाले असर का तो अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। जो झंडारोहण में शामिल होने के लिए घर से निकले थे खुशी-खुशी। लेकिन उन्हें न केवल हिंसक हमले का शिकार होना पड़ा बल्कि देशद्रोही और पाकिस्तानी जैसे तमगों से भी नवाजा गया। फिर तो उसके बाद कुछ बचता ही नहीं। आखिरी सच यही है कि कोई मुस्लिम कितना ही तिरंगा फहरा ले। और कितनी ही देशभक्ति की बात कर ले। लेकिन चूंकि उसका धर्म दूसरा है लिहाजा उसे हमेशा ही शक के घेरे में रहना होगा।

यहां एक बात गौर करने की है। तिरंगा यात्रा के नाम पर निकले जुलूस में तिरंगा कम भगवा झंडा ज्यादा थे। यानी उस समूह को भी किसी तिरंगे से ज्यादा भगवा से प्यार था। और तिरंगे के आधार पर देशभक्ति की कोई कसौटी तय की जाए तो भगवाधारी उसमें आखिरी पायदान पर होंगे। ऐसे में अगर किसी की देशभक्ति पर सवाल है तो वो मुस्लिम नहीं बल्कि भगवा से प्यार करने वालों पर है। जिन्हें न तो देश की चिंता है। और न ही उसके भाईचारे और सौहार्द्र से उन्हें कुछ लेना-देना है। उन्हें सिर्फ अपने धर्म की सांप्रदायिक पताका बुलंद करनी है। जिसमें दूसरे धर्मों और उसके लोगों के लिए किसी प्रेम और भाईचारे की जगह सिर्फ और सिर्फ घृणा और नफरत है।

यहां भी झगड़ा किसी तिरंगे को लेकर नहीं बल्कि साथ गए भगवे के चलते हुआ। जिसमें जुलूस में शामिल लोग न केवल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काने वाले नारे लगा रहे थे बल्कि उनसे जबरन भगवा झंडा फहराने की मांग कर रहे थे। जैसा कि कुछ वीडियो फूटेज में पहले भी आ चुका है। जिसे एबीपी चैनल ने प्रसारित भी किया था। अगर सचमुच में कोई पूछे कि भला तिरंगे के साथ भगवा झंडे का क्या काम हो सकता है? और वो भी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर? तो शायद ही किसी के पास इसका कोई जवाब होगा। लेकिन इसकी सच्चाई बिल्कुल दूसरी है। दरअसल तिरंगे के साथ भगवा का होना एक बिल्कुल सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। जिसके जरिये दंगा फैलाना आसान हो जाता है। और वो भी तिरंगा और राष्ट्रवाद के नाम पर। इससे भला बेहतर तरीका और क्या हो सकता है।

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